प्रगतिशील लेखक संघ की ओर से सुरेश पांडे का रचना संसार विषयक गोष्ठी का हुआ आयोजन

साहित्य संवेदना व अहसासों से भरा है सुरेश पांडे का रचना संसार

प्रगतिशील लेखक संघ की ओर से सुरेश पांडे का रचना संसार विषयक गोष्ठी का हुआ आयोजन

साहित्य संवेदना व अहसासों से भरा है सुरेश पांडे का रचना संसार

सुरेश पांडे के रचना संसार में 40 वर्षों का प्रवासी जीवन- रघुवंशमणि

बस्ती, 30 दिसम्बर। प्रेस क्लब सभागार में प्रगतिशील लेखक संघ की बस्ती इकाई के तत्वावधान में स्वीडन निवासी प्रवासी साहित्यकार सुरेश पांडे का रचना संसार विषयक संगोष्ठी और उनकी तीन कृतियों ‘यादों के इंद्रधनुष’, ‘मुस्कुराता रूप तेरा’, और ‘आंगन की दीवार’ का लोकार्पण हुआ जिसका संचालन डॉ अजीत कुमार श्रीवास्तव ’राज़’ने किया। कार्यक्रम की शुरुआत अर्चना श्रीवास्तव द्वारा वाणी वंदना से हुई।

डॉ अखंड प्रताप सिंह ने सुरेश पांडे की कथा साहित्य पर प्रकाश डालते हुए कहा कि सुरेश पांडे का कथा साहित्य संवेदना और एहसासों से भरा पड़ा है। उनकी लघु कहानियां जीवन के यथार्थ और भोगे हुए संदर्भों का संग्रह है। इतना ही नहीं कहानी की भाषा सहज है। उनका कथा साहित्य आने वाले समय में एक नया अध्याय रचेगा। मुख्य वक्ता डॉ मुकेश मिश्र ने उनके संपूर्ण रचना संसार पर प्रकाश डालते हुए कहा सुरेश की कविताओं पर छायावादी प्रभाव के रूप को संदर्भित किया है। उनकी कविताओं में प्रेम, प्रकृति मानवीकरण से भरा पड़ा है इसलिए उसमें छायावाद का रूप होने के साथ प्रगतिशीलता के भी कई रूप देखे जा सकते हैं।

अध्यक्षता कर रहे प्रो० रघुवंश मणि ने कहा कि सुरेश के रचना संसार में क्या घटित हुआ कैसे उनके संदर्भ वह साहित्य में लेकर आये, साथ ही साथ वह संस्कृतियों के बीच अपने लेखन को कैसे व्यवस्थित करते है, उसे बताने का प्रयास किया। उन्होंने कहा सुरेश पांडे के रचना संसार में उनका चालीस वर्षों का प्रवासी जीवन तो है ही किंतु उसमें सांसारिक जीवन के बहुत से पहलू भी है जो जीवन में आते हैं।

उन्होने अपने कथा साहित्य के साथ कविताओं में जो रेखांकित किया है वह उनका अद्भुत प्रयास है। कार्यक्रम का संचालन करते हुए डॉ अजीत कुमार श्रीवास्तव ने कहा कि सुरेश पांडे की रचनाओं में यथार्थ का संदर्भ बड़े रूप में है जिसे सहज रूप में कविता में उन्होंने व्यक्त किया है। वह प्रवासी हिंदी कविता के सशक्त हस्ताक्षर है।

बी० के० मिश्र ने सुरेश पांडे के रचना संसार पर प्रकाश डालते हुए कहा कि प्रवासी जीवन को उन्होंने हिंदी साहित्य में लिखा है वह विशेष रुप में उल्लेखनीय इसलिए है कि वह अपनी मातृभूमि से पृथक नहीं हो पाते हैं। उसे सहजने के साथ उसे बराबर अपनी स्मृतियों में रखकर हिंदी साहित्य के माध्यम से अपने में उतारनें का प्रयास करते हैं। वह सचमुच साहित्य के सच्चे साधक हैं।

कार्यक्रम में डॉ राजेंद्र सिंह ’राही’, प्रतिमा श्रीवास्तव, कौशलेंद्र सिंह, अरूण श्रीवास्तव,खूशबू चौधरी, चांदनी चौधरी, सर्वेश श्रीवास्तव, बशिष्ठ पांडे, संदीप गोयल, अशोक श्रीवास्तव, राम साजन यादव, जय प्रकाश उपाध्याय, राकेश तिवारी, दीपक सिंह प्रेमी, आदित्य राज, जगदंबा प्रसाद भावुक, अफ़ज़ल हुसैन अफ़ज़ल, विनोद, विवेक, विपिन, अनूप आदि गणमान्य शामिल रहे।

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