7 दिवसीय श्रीविष्णु महायज्ञ संत सम्मेलन

रूक्मिणी और कन्हैया का विवाह जीव और ईश्वर का मिलन
7 दिवसीय श्रीविष्णु महायज्ञ संत सम्मेलन
बस्ती । श्री बाबा झुंगीनाथ धाम में 7 दिवसीय श्रीविष्णु महायज्ञ संत सम्मेलन में श्रीमद्भागवत कथा के चौथे दिन व्यासपीठ से आचार्य देवर्षि त्रिपाठी ने कहा कि यशोदा के हृदय में बसा हुआ कन्हैया जागा है किन्तु हमारे हृदय का कन्हैया सोया हुआ है। जब तक परमात्मा को प्रेम से न बाधा जाय संसार का बन्धन बना रहता है। ईश्वर को फल दोगे तो वे तुम्हें रत्न देंगें। पाप के जाल से छूटना आसान नही है, जब तक पुण्य का बल बढता नही पाप की आदत नहीं छूटती।
महात्मा जी ने कहा कि जो ईश्वर से मिलना चाहता है उसे अपना जीवन सादा रखना चाहिये। राजकन्या होते हुये भी रूक्मिणी पार्वती जी के दर्शन के लिये पैदल ही गयी। रूक्मिणी और कन्हैया का विवाह जीव और ईश्वर का मिलन है।
महात्मा सन्तोष शुक्ल ने कथा क्रम में भक्त प्रहलाद, कुन्ती की भक्ति और भीष्म का प्रेम, राधा के त्याग, गोकुल भूमि की महिमा और ग्वाल बाल गोपिकाओं का श्री कृष्ण के प्रति समर्पण, महारास के आध्यात्मिक विन्दुओं का वर्णन करते हुये कहा कि संसार में कुन्ती जैसा बरदान किसी ने नहीं मांगा । कुन्ती ने कन्हैया से दुःख मांगा जिससे उनका कन्हैया उनसे दूर न जाय। आजकल तो लोग भगवान से केवल सुख मांगते हैं किन्तु बिना दुख के साधना पूर्ण ही नही हो सकती।
कथा में संयोजक धु्रवचन्द्र पाठक, मुख्य यजमान गुरू प्रसाद गुप्ता, उदय नरायन पाठक, सीता पाठक, जगदम्बा पाण्डेय, शीतला गोस्वामी, शिवमूरत यादव, रामसुन्दर, उदयनरायन पाठक, ओम प्रकाश पाठक, परमात्मा सिंह, अनिल पाठक, मनोज विश्वकर्मा, नरेन्द्र प्रसाद त्रिपाठी, त्रियुगी नारायण त्रिपाठी, हृदयराम गुप्ता, पिन्टू मिश्रा, बब्लू उपाध्याय, रामसेवक गौड़, उर्मिला त्रिपाठी, बीरेन्द्र ओझा , अमरजीत सिंह , शुभम पाठक , राम बहोरे , उमेश दुबे सहित बड़ी संख्या में श्रद्धालु श्रोता उपस्थित रहे।

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