कवि सम्मेलन-पहले बाप से डर लगता था, अब बेटों से डर लगता है

कवि सम्मेलन-पहले बाप से डर लगता था, अब बेटों से डर लगता है
बस्ती । गणतंत्र दिवस के उपलक्ष्य में शव्दांगन साहित्यिक संस्था की ओर से प्रेस क्लब सभागार में राष्ट्रीय कवि सम्मेलन मुशायरे का आयोजन में वरिष्ठ कवि डॉ. रामकृष्ण लाल ‘जगमग’ की अध्यक्षता में सम्पन्न हुआ। मुख्य अतिथि महेश प्रताप श्रीवास्तव और डा. वी.के. वर्मा ने कहा कि स्वतंत्रता आन्दोलन में साहित्यकारों की बड़ी भूमिका थी और उनके साहित्य, कविताओं ने वैचारिक ज्वाला पैदा किया उससे अंग्रेजी हुकूमत की चूलें हिल गयी। संचालन विनोद कुमार उपाध्याय ने किया।
सरस्वती वंदना से आरभ कवि सम्मेलन में डॉ. रामकृष्ण लाल ‘जगमग’ की पंक्तियां सूखा अब सरवर लगता है, मानव भी विषधर लगता है, पहले बाप से डर लगता था, अब बेटों से डर लगता है’ सुनाकर आज के वर्तमान परिदृश्य पर करारा व्यंग्य किया। डा. वी.के वर्मा ने कुछ यूं कहा‘ पहले तो थे हम परतंत्र, लेकिन अब हो गये स्वतंत्र, श्रम की पूजा करो निरन्तर, श्रम ही है जीवन का मंत्र, सुनाकर वाहवाही लूटी। महेश श्रीवास्तव की रचना आसान हैं पर इतने भी आसान नहीं हैं’ सुनाया। विनोद कुमार उपाध्याय की पंक्ति ‘ कर कर के याद कितने ही आंचल भिगोये थे, जाने वो बात क्या थी कि जी भर के रोये थे सुनाकर प्रेम के भाव को स्वर दिया। कवियत्री नेहा मिश्रा और डा. अंजना ने प्रेम और वियोग पर केन्द्रित रचना सुनायी।
की बीर रस के कवि अजय श्रीवास्तव ने कुछ यूं कहा ‘ क्षत्राणी जलकर राख हुआ करती हैं भरी जवानी में’ चिता धधकती है अब भी जौहर की अमर कहानी में’ सुनाकर कवि सम्मेलन को ऊंचाई दी। कवि सम्मेलन में मुख्य रूप से सलीम वस्तवी ‘अजीजी’, दीपक सिंह प्रेमी, जगदम्बा प्रसाद भावुक, डा. अजीत श्रीवास्तव ‘राज’ अर्चना श्रीवास्तव, हरिकेश प्रजापति, आदित्यराज, श्याम प्रकाश शर्मा, डा. त्रिभुवन प्रसाद मिश्र, बटुक नाथ शुक्ल आदि ने अपनी कविताओं से राष्ट्र प्रेम का संदेश दिया।

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