के डी हॉस्पिटल पर दोपहर बाद से शुरू हुआ बच्चे के मृत्यु का हाई वोल्टेज ड्रामा देर रात समझौते पर खत्म हुआ

के डी हॉस्पिटल पर दोपहर बाद से शुरू हुआ बच्चे के मृत्यु का हाई वोल्टेज ड्रामा देर रात समझौते पर खत्म हुआ
बस्ती (संवाददाता) । पहले डॉक्टर एस के गौड़,फिर पीएमसी की रेणु राय और अब के डी हॉस्पिटल लगातार हुई बच्चों के मौत के मामले ने पूरे जनपद को सनसनी फैला रखी थी। सोमवार को पूरा दिन के डी हॉस्पिटल जनपद में चर्चा का मुख्य मुद्दा बना रहा।
दोपहर 12 बजे के बाद हॉस्पिटल से बच्चे का रिफर लेकर गोरखपुर जाने वाले छोटू का परिवार मुंडेरवा ही पहुंचा था तभी उनको नवजात बच्चे के निष्प्राण होने की जानकारी मिली । गोरखपुर से लौटे परिजनों ने हॉस्पिटल में बवाल मचा दिया। दोपहर बाद शुरू हुआ हाई वोल्टेज ड्रामा देर रात तक चलता रहा। हॉस्पिटल पर दोपहर से ही मीडिया की टीम जुटी रही,लोग बयान लेकर चलाते रहे।शुरू में तो लगा कि फिर एक बार डॉक्टर एस के गौड़ कांड दोहराया जाएगा। पुलिस भी पहुंच चुकी थी लेकिन कोई लिखित शिकायत न होने से वापस चली गई।
इस बीच बच्चे के पिता छोटू और उसके परिजन घूम घूम कर मीडिया को बयान देते हुए हॉस्पिटल पर लूट लेने,इलाज में लापरवाही और पैसे के लिए बच्चे को बंधक बनाने तक का आरोप लगाते रहे। किसीने जमीन बेचने का दावा किया तो किसी ने गहना।
खोदा पहाड़ निकली चुहिया
लेकिन ये क्या खोदा पहाड़ निकली चुहिया वाली कहावत सत्य हुई कही तो के डी हॉस्पिटल में।
देर शाम होते होते छोटू के तेवर भी ठंडे पड़ गए। पुलिस को जब उसने शिकायतपत्र नहीं दिया तो फिर मामला साफ हो चुका था कि कुल मिलाकर मोलभाव की मुद्रा बैठा छोटू केवल दबाव बनाने की कोशिश में था जिससे हॉस्पिटल से कुछ लाभ लिया जा सके । लेकिन जैसे ही बारिश और रात्रि की वजह से मीडिया हटी छोटू का तेवर भी ठंडा पड़ गया । दोपहर से शुरू हुआ ड्रामा अंत में दो तीन दौर की बैठक के बाद समझौते पर समाप्त हो गया।
मृत बच्चे के पिता छोटू ने अपने दिए बयान और समझौता पत्र में बताया कि वह लोगों के ने भड़काने में आ गया था। हॉस्पिटल के प्रबंधन और स्टाफ से कोई शिकायत नहीं।कुछ लोगों ने उसे भड़का दिया था।जिससे वह बहक गया था।छोटू का कहना था कि उसे हॉस्पिटल पर आरोप लगाने और दबाव बनाने के लिए उकसाया गया था।
क्या कहा हॉस्पिटल प्रबंधक प्रशांत चौधरी ने
वहीं हॉस्पिटल के प्रबंधक प्रशांत चौधरी ने बताया कि उनके हॉस्पिटल स्टाफ ने उसकी जरूरत को समझते हुए बहुत जिम्मेदारी से बच्चे का इलाज किया था।एक बार बच्चा ठीक हो कर वापस चल गया था लेकिन दो दिन बाद फिर से उसे गंभीर अवस्था में भर्ती करवाया गया था। परिजनों को बच्चे की स्थिति पहले ही बता दी गई थी। बहुत कोशिश के बाद जब स्थिति में सुधार नहीं हुआ तो उसे हायर सेंटर रिफर कर दिया गया। हमने एंबुलेंस भी उपलब्ध करवाया था लेकिन हमारे एंबुलेंस से न जाकर उसने दूसरा एंबुलेंस लिया और गोरखपुर के लिए निकल गए। रस्ते में क्या हुआ नहीं पता।
जहां तक बात पैसे की है तो कुल इलाज के दौरान उसने केवल 5 हजार दिया था,उसकी स्थिति देखते हुए उससे दावा आदि के 30 हजार मात्र मांगे गए थे जिसमें उसने कुल 15 हजार दिए बाकी पैसा बाद देने को कहा था लेकिन जब लौट के आया तो उसके तेवर कुछ और थे और उसने बहकावे में बवाल कर दिया बाद ने उसे इसका अहसास हुआ तो सुने खुद ही सुलहनामा लिख मामला खत्म कर दिया।