सोशल ऑडिट में सहभागिता,जवाबदेही,और पारदर्शिता का नारा मात्र ,गुपचुप फोटो खिंचाने तक सिमटा
सोशल ऑडिट में सहभागिता,जवाबदेही,और पारदर्शिता का नारा मात्र ,गुपचुप फोटो खिंचाने तक सिमटा
बस्ती । ग्राम पंचायत द्वारा किए गए कार्यों में पारदर्शिता लाने के लिए सरकार सोशल ऑडिट करवाती है। सोशल ऑडिट का मतलब करवाए गए, कार्यों का भौतिक और सामाजिक सत्यापन।
सोशल आडिट निदेशालय द्वारा जारी कैलेंडर के अनुसार जनपद में समस्त ग्राम पंचायत में प्रधानमंत्री आवास एवं मनरेगा योजना के तहत कराए गए समस्त कार्यों की जांच की जाती है। सरकार का मुख्य उद्देश्य जवाबदेही ,पारदर्शिता एवं सहभागिता जो गांव में मनरेगा के तहत पंजीकृत श्रमिकों के बीच में बैठक किया जाना है। लेकिन अब वह केवल चंद प्रधान के चाहेतो के बीच करते हुए मात्र 1 घंटे में कोरम की पूर्ति की जाती है ।
अधिकतर ग्राम पंचायत में 10:30 / 11:30 बजे ही बैठक को समाप्त कर सोशल ऑडिट के ऑडिटर द्वारा अपने कर्तव्य का इति श्री कर दिया जाता है । जिससे जनपद के जिम्मेदार भी अनभिज्ञ नहीं है।
कहना ना होगा की पारदर्शिता, जवाबदेही एवं सहभागिता का स्लोगन केवल बैठक के बैनर पर दिखाई देता है। सोशल ऑडिट मात्र खानापूर्ति बनकर रह गई है। यही नहीं लगभग अधिकांश ऑडिटरों द्वारा करोड़ों रुपए के जांच से संबंधित बैठक को महज 1 से 2 घंटे में समाप्त कर दिया जाता है । प्रधान के चाहतों को बुलाकर फोटो खींचकर बैनर को तुरंत उतार दिया जाता है। जबकि अन्य जनपदों में यह बैठक 10:00 बजे से लेकर 3:00 बजे तक की जाती है
ऐसे ही एक मौके पर मीडिया टीम जब भुवर सराय गांव में लगभग 10:45 ग्राम पंचायत पर पहुंची तो पंचायत भवन पर ताला लटका हुआ था। भवन की स्थिति देख कर लग रहा था कई दिनों से ताला नहीं खुला है। जब प्रधान को फोन किया गया तो प्रधान बताया कि ऑडिट 11 बजे से पहले ही पूरी हो गई।पंचायत भवन में बैठक हुई थी। लेकिन पास ही आम बीन रही एक महिला ने बताया कि कुछ लोग आए थे फोटो खींच कर तुरंत चले गए । सोशल ऑडिट के बारे में उसको कुछ पता नहीं है।